Sunday 6 May 2012

संत नामदेव



संत नामदेव जी का जन्म सन १२६९ के लगभग महाराष्ट्र में कृष्णा नदी पर स्थित  नरस वामनी गांव, जिल्हा सतारा में हुआ| आप जी के माता जी का नाम गोनाबाई और पिता जी का नाम दमा शेट जी था | आप बचपन से ही विट्ठल भगवान के बहुत बड़े भगत थे | आप जात से छिपा (कपडों पर छपाई करने वाले) थे | आचार्य श्री गरीबदास महाराज जी ने वाणी में लिखते हैं की
 
नामा छिपा पद परवान, देवल फेर छवाई दई छान |
नामदेव जी का परिवार उनके जन्म के बाद पंढरपुर में आकर रहने लगा था | माता पिता दोनों विट्ठल के भगत थे | नामदेव जी के अंदर बचपन से ही विट्ठल भगवान के प्रति बहुत प्रेम था | वह सात साल की उम्र में ही विट्ठल के भजन गाने लगे थे |
माता हर दिन विट्ठल भगवान को दूध का भोग लगाया करती थी | एक दिन माता अपने काम में काफी व्यस्त थी तो उन्होने नामदेव जी को विट्ठल भगवान को दूध का भोग लगाने को भेजा | नामदेव जी ने प्रेम से जैसे ही विट्ठल भगवान को दूध का कटोरा अर्पण किया वैसे ही भगवान ने मूर्ति में से प्रगट हो कर पूरा दूध पि लिया | नामदेव जी ने घर जाकर खुशी से सारा वृतान्त कह सुनाया | माता पिता दोनों आश्चर्य करने लगे उन्हें नामदेव की बातों पर विश्वास नहीं हुआ | वह नामदेव को साथ ले गए और भगवान को फिर से भोग लगाने को कहा | नामदेव के दूध अर्पण करने पर विट्ठल भगवान मूर्ति से प्रकट हो कर दूध पिने लगे | यह देखकर माता पिता आश्चर्य चकित रह गए | आचार्य श्री गरीबदास जी भक्ति माल में लिखते हैं,
नामा पिता पंचौ लिये बुलाय | पुजा करो हरि बिठ्ठल राय || ८४ ||
हरि बिठ्ठला की करै नामा सेव | बोलत नाहीं पाषाण का देव || ८५ ||
दूध पीवो नै गोबिन्देही राय | बिन पिये मेरा मन न पिताय || ८६ ||
नामा के दिल में जो देखी है सूध | हरि बिठ्ठला आन पिया जो दूध || ८७ ||
माता पिता कहें कैसा जुहार | आये तत्कालम लगाई न बार || ८८ ||
नामा कहै सुनो माता पिताय | हरि बिठ्ठला दूध पीया जु धाय || ८९ ||
माता पिता देखैं नामा का नेह | हरि बिठ्ठला दूध कैसे पियेह || ९० ||
दूध कटोरा लिया माता हाथ | चाल्या पिता नामदेव की जो साथ || ९१ ||
दूध पीवो ने गोविन्दे गोपाल | माता पिता भ्रम तोरो नै जाल || ९२ ||
पाहन से परमेश्वर होय | माता पिता खड़े देखैं जु दोय || ९३ ||
दोऊ कर पकर्या कटोरा कसीस | दूध पीवै हरि बिठ्ठला ईश || ९४ ||
माता पिता का जु मेट्या संदेह | पिया दूध बिठ्ठलम् जु नामा सनेह || ९५ ||
नामदेव जी विट्ठल भगवान के बहुत बड़े भगत थे| उनका सारा दिन विट्ठल भगवान के दर्शन, भजन कीर्तन में ही गुजर जाता था |
आपजी की शादी राधाबाई से हुई | सांसारिक कार्यों में उनका जरा भी मन नहीं लगता था | परिवार की तरफ नामदेव जी बिलकुल भी ध्यान नहीं दे पाते थे |
संत ज्ञानेश्वर जी से भेंट
एक समय महान संत ज्ञानेश्वर जी अपने भाइयों निवृति, सोपान तथा बहन मुक्ताबाई के साथ पंढरपुर में आए तो चंद्रभागा नदी के किनारे नामदेव जी को कीर्तन करते देख बहुत प्रभावित हुए | दोनों संत हमेशा एकसाथ रहने लगे | अब तक नामदेव जी परमेश्वर के सगुण स्वरुप विट्ठल के उपासक थे और विट्ठल के दर्शन के बिना नहीं जीते थे, उनके लिए परमेश्वर सिर्फ विट्ठल भगवान की मूर्ति ही थी | ज्ञानेश्वर जी निर्गुण के उपासक थे | नामदेव जी के लिए पंढरपुर को छोड़ कर जाना मृत्यु के सामान प्रतीत होता था | लेकिन ज्ञानेश्वर जी के विशेष आग्रह पर उनके साथ संतों की मण्डली में चल पडे | अब  तक नामदेव जी ने कोई गुरु नहीं किया था| आप केवल विट्ठल को ही अपना गुरु मानते थे | रास्ते में मण्डली एक जगह रुकी तो सतसंग के पश्चात मण्डली संत गोरा जी (जो की एक कुम्हार थे) को सब के मटके (सिर) की जाँच करके पक्का या कच्चा बताने के लिए कहने लगे | गोरा जी ने एक लकड़ी से सब के सिर बजा कर देखे (जैसे कुम्हार मटकों को बजा कर देखता है) कोई नहीं रोया जब नामदेव जी के सिर को बजा कर देखा तो नामदेव जी जोर जोर से रोने लगे| यह देखकर सभी संत जोर जोर से हँसने लगे | इससे नामदेव जी बड़े आहत हुए और वहाँ से सीधे विट्ठल के पैरों में गिरकर रोने लगे | भगवान ने आप को गुरु करने के लिए कहा, तो नामदेव जी कहने लगे जब मुझे आपके दर्शन ही हो गए तो मुझे गुरु की क्या जरुरत है| भगवान ने कहा की नामदेव जब तक तू गुरु नहीं करता तबतक तू मेरे वास्तविक स्वरुप को नहीं पहचान सकता | नामदेव जी कहने लगे प्रभु मैं आप को कहीं भी कभी भी पहचान सकता हूं | भगवान ने नामदेव से कहा की तू आज मुझे पहचान लेना मैं तेरे आगे से निकल कर जाऊंगा | भगवान एक पठान घुडसवार के रूप में नामदेव के आगे से गुजरे तो नामदेव भगवान को पहचान न सके | इसपर नामदेव जी गुरु करने को मान गए, भगवान ने उन्हें विसोबा खेचर को गुरु करने को कहा | विसोबा खेचर ज्ञानदेव जी के शिष्य थे | नामदेव जी ने विसोबा खेचर को गुरु किया और सर्व व्यापक परमेश्वर का ज्ञान पाया | महाराज जी वाणी में लिखते हैं
गरीब नामा छिपा ओम तारी, पीछे सोहं भेद विचारी |
सार शब्द पाया जद लोई, आवागमन बहुर न होई ||
आचार्य श्री गरीब दास जी महाराज अपनी वाणी में नामदेव जी द्वारा किये गए चमत्कारों का कई जगह वर्णन करते हैं| जैसे
१.      पंढरपुर नामा परवान देवल फेर छीवाय दई छान |
२.     बिठ्ठल हो कर रोटी पाई नामदेव की कला बधाई |
एक समय आप औढा नागनाथ (शिव ज्योतिर्लिंग) में मंदिर के दरवाजे पर भजन कर रहे थे तो पंडित ने उन्हें मंदिर के पीछे जा कर भजन करने को कहा | आप पीछे जा कर भजन करने लगे तो मंदिर का मुख घूम कर पीछे की तरफ हो गया | इसी तरह भगवान ने एक बार आप जी की झोंपड़ी को ठीक किया|
एक समय आप भजन कर रहे थे तो एक कुत्ता आकर रोटी उठाकर ले भगा| नामदेव जी उस कुत्ते के पीछे घी का कटोरा लिए भागे और कहने लगे भगवान रुखी मत खाओ साथ में घी भी लेते जाओ | नामदेव का भाव देखकर भगवान को कुत्ते में से प्रगट होना पडा |
एक समय बीदर के एक ब्राह्मण ने नामदेव जी को कीर्तन के लिए बुलाया | सुलतान ने नामदेव और बाकी संगत को पकड़ कर कैद कर दिया| फिर नामदेव को इस्लाम स्वीकार करने को कहा या फिर मरी हुई गाय जीवित करने को कहा | नामदेव जी जब ना माने तो आप को मद मस्त हाथी के आगे फेंका गया तो हाथी शांत हो गया | नामदेव जी की माता ने उन्हें जान बचाने के लिए इस्लाम स्वीकार करने को कहा लेकिन नामदेव जी ने मरी हुई गाय जीवित करके सुलतान को चकित कर दिया| सुलतान ने नामदेव का आदर सत्कार किया| आचार्य श्री गरीबदास जी महराज ने इस घटना का भी अपनी वाणी में उल्लेख किया हैं |

भारत भ्रमण
नामदेव जी संत ज्ञानेश्वर और अन्य संतों के साथ भारत भ्रमण को गए | मण्डली ने सम्पूर्ण भारत के तीर्थों की यात्रा की | मार्ग में अनेकों चमत्कार भी किये |
भ्रमण करते करते जब मण्डली मारवाड के रेगिस्तान में पहुंची तो सभी को बहुत प्यास लगी| फिर एक कुआ मिला पर उस का पानी बहुत गहरा था  और पानी निकालने का कोई साधन भी नहीं था | ज्ञानेश्वर जी अपनी लघिमा सिद्धि के द्वारा पक्षी बनकर पानी पीकर आ गए | नामदेव जी ने वहीँ पर कीर्तन आरंभ किया और रुक्मिणी जी को पुकारने लगे | कुआ पानी से भर कर बहने लगा | सभी ने अपनी प्यास बुझाई | यह कुआ आज भी बीकानेर से १० मील दूर कलादजी में मौजूद है |
भारत भ्रमण के बाद नामदेव जी ने भंडारा दिया जिस में स्वयं विट्ठल भगवान और रुक्मिणी जी पधारे |
जब से नामदेव और संत ज्ञानेश्वर जी मिले कभी भी अलग नहीं हुए | भारत भ्रमण के बाद ज्ञानदेव जी ने २० या २१ वर्ष की आयु में सजीव समाधी (खुद की इच्छा से शरीर त्यागना) लेने का निश्चय किया और पुणे के नजदीक आलंदी में सजीव समाधी ली | नामदेव जी उस समय उन के साथ ही थे | ज्ञानेश्वर जी की समाधि के एक वर्ष के भीतर उनके  भाई तथा गुरु निवृति , छोटे भाई सोपान और बहन मुक्ताबाई इस संसार को छोड़ गए | नामदेव जी ने इन चारों संतों के अंतिम समय का सुन्दर वर्णन अपनी रचनाओं में किया है |
इसके बाद नामदेव जी पंजाब में गुरदासपुर जिले के घुमन गांव में रहने लगे | यहाँ पर वह २० वर्ष तक रहे | घुमन में उनकी याद में समाधी मंदिर बना हुआ है | आप की कुछ रचनाओं को श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में शामिल किया गया है |


वारकरी संप्रदाय :सामान्य जनता प्रति वर्ष आषाढी और कार्तिकी एकादशी को विठ्ठल दर्शन के लिए पंढरपुर की ‘वारी’ (यात्रा) किया करती है | यह प्रथा आज भी प्रचलित है | इस प्रकार की वारी (यात्रा) करने वालों को ‘वारकरी’ कहते हैं | विठ्ठलोपासना का यह ‘संप्रदाय’ ‘वारकरी’ संप्रदाय कहलाता है | नामदेव इसी संप्रदायके एक प्रमुख संत माने जाते हैं |

उन्होंने अस्सी वर्ष की आयु में पंढरपुर में विट्ठल के चरणों में आषाढ़ त्रयोदशी संवत 1407 तदानुसार 3 जुलाई, 1350ई. को समाधि ली |

भक्त नामदेवजी का महाराष्ट्र में वही स्थान है, जो भक्त कबीरजी अथवा सूरदास का उत्तरी भारत में है। उनका सारा जीवन मधुर भक्ति-भाव से ओतप्रोत था। विट्ठल-भक्ति भक्त नामदेवजी को विरासत में मिली। उनका संपूर्ण जीवन मानव कल्याण के लिए समर्पित रहा। मूर्ति पूजा, कर्मकांड, जातपात के विषय में उनके स्पष्ट विचारों के कारण हिन्दी के विद्वानों ने उन्हें कबीरजी का आध्यात्मिक अग्रज माना है।

संत नामदेवजी ने पंजाबी में पद्य रचना भी की। भक्त नामदेवजी की बाणी में सरलता है। वह ह्रदय को बाँधे रखती है। उनके प्रभु भक्ति भरे भावों एवं विचारों का प्रभाव पंजाब के लोगों पर आज भी है। भक्त नामदेवजी के महाप्रयाण से तीन सौ साल बाद श्री गुरु अरजनदेवजी ने उनकी बाणी का संकलन श्री गुरु ग्रंथ साहिब में किया। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में उनके 61 पद, 3 श्लोक, 18 रागों में संकलित है।

वास्तव में श्री गुरु साहिब में नामदेवजी की वाणी अमृत का वह निरंतर बहता हुआ झरना है, जिसमें संपूर्ण मानवता को पवित्रता प्रदान करने का सामर्थ्य है।